Skip to main content

26 April Current Affairs 2019


26 April Current Affairs 2019


26 April Current Affairs 2019


26 April 2019 Current Affairs
All Update             Click Here
Current Affairs      Click Here
News Update         Click Here
1.डब्ल्यूएचओ ने हाल ही में किस वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए दिशानिर्देश जारी किया ?
उत्तर- पांच वर्ष |
2.हाल ही में वैज्ञानिकों के अनुसार किस ग्रह पर संभावित तौर पर पहले ज्ञात भूकंप के झटकों का पता लगाया ?
उत्तर- मंगल ग्रह |
3.किस हाईकोर्ट ने ‘टिकटॉक’ के एप्पल ऐप स्टोर और गूगल प्ले स्टोर से डाउनलोड ना किया जा सकने वाला बैन हटा लिया ?
उत्तर- मद्रास हाईकोर्ट |
4.हाल ही में अफ्रीका के किस देश में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर दुनियाभर में मलेरिया का पहला वैक्सीन लॉन्च किया गया ?
उत्तर- मलावी |
5.आरबीआई ने राष्ट्रीय आवास बैंक और किस बैंक में अपनी पूरी हिस्सेदारी क्रमश: 1,450 करोड़ रुपये और 20 करोड़ रुपये में सरकार को विक्रय कर दी ?
उत्तर- राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) |
6.हाल ही में पक्षी विज्ञानियों ने किस स्थान पर ‘वांगी-वांगी व्हाइट आई बर्ड’ की खोज की ?
उत्तर- इंडोनेशिया |
7.भारत वैश्विक प्रतिभा प्रतिस्पर्धा सूचकांक, 2019 में किस स्थान पर है?
उत्तर- 80वें |
8.संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक वर्ष कार्यक्षेत्र में दुर्घटनाओं और कार्य के चलते हुई बीमारियों से कितने कामगारों की मौत हो जाती है ?
उत्तर- 27.8 लाख |
9.उत्तर कोरिया के शीर्ष नेता किम जोंग अपनी निजी ट्रेन से किस देश की यात्रा पर हैं ?
उत्तर- रूस |
10.किस एथलीट ने एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप 2019 में भारत का पहला स्वर्ण पदक जीता ?
उत्तर- गोमती मारीमुथु |



प्रजातंत्र के होने का अर्थ
प्रजातंत्र के होने का अर्थ
Date:26-04-19
Image result for प्रजातंत्रकिसी भी प्रजातंत्र के लिए चुनाव उसका अभिन्न अंग होते हैं। लेकिन यही अंतिम सत्य नहीं है। इस संस्था का अंतिम सत्य तो जनता और उसके जीवन की अंतर्वस्तु होती है। दुर्भाग्यवश भारत की राजनीतिक प्रक्रिया में राजनैतिक दल, चुनाव के पहले की अपनी कथनी को सत्ता में आने के बाद बदल देते हैं, और इस प्रकार से प्रजातंत्र की अनदेखी की जाती रहती है।
राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षता
पिछले पाँच वर्षों में, राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता, दो ऐसे जुमले रहे हैं, जो देश की राजनीति पर छाए रहे हैं। ये दोनों ही तत्व भाजपा और कांग्रेस से जुड़े रहे हैं। भारतीय प्रजातंत्र के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता एक प्रकार का आदर्श नारा है। परन्तु राजनैतिक दलों ने इसे भिन्न स्वरूप में प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है। वास्तव में यह चिंतनीय है।
दरअसल, राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता जैसे तत्वों के लिए प्रजातंत्र का होना अनिवार्य नहीं है। ईरान के अंतिम शाह और ईराक में सद्दाम हुसैन के अधीन भी धर्मनिरपेक्षता थी; जबकि ये दोनों ही शासक तानाशाह थे। चीनी गणतंत्र भी इतना राष्ट्रवादी है कि उसके समाजवाद को चीनी विशेषताओं वाला समाजवाद माना जाता है। बहरहाल, वह एक प्रजातंत्र नहीं है। भारत के लिए प्रजातंत्र, राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता से बढ़कर होना चाहिए। लेकिन यह दांव पर लगा हुआ है। इसका अर्थ यह नहीं कि प्रजातंत्र में इन दोनों आदर्शों का स्थान नगण्य है। वास्तव में तो ये तत्व प्रजातंत्र के महत्वपूर्ण भाग हैं।
अगर राष्ट्रवाद पर नजर डालें, तो प्रजातांत्रिक समुदाय बनने के साथ ही अपने राष्ट्र के हितों की रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य बन जाता है। भारत में खतरे दो स्रोतों से आते हैं। भारत से शत्रुता रखने वाले क्षेत्रों में चीन जैसे सत्तावादी शासन हैं। दूसरा, पश्चिमी शक्तियों ने अपने आर्थिक और राजनीतिक हितों को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक निकायों पर कब्जा कर लिया है, और इन बहुपक्षीय एजेंसियों के माध्यम से वे भारत के बाजार को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।
दूसरा तत्व धर्मनिरपेक्षता है। सैद्धांतिक रूप से तो किसी प्रजातांत्रिक सरकार के कार्यकलापों में धार्मिक प्रभाव दिखाई नहीं देना चाहिए। वर्तमान भारत में इस तथ्य की प्रासंगिकता को समझना आवश्यक है। इसके लिए अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों की रक्षा की जानी चाहिए।
राजनैतिक दलों के दांव-पेंच
भारतीय समाज में राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता की प्रासंगिकता को स्वीकार करने के लिए राजनैतिक दलों को इन तत्वों के दुरूपयोग करने का काम नहीं करना चाहिए। हमने हाल ही में ऐसे पाँच वर्ष पूरे किए हैं, जिसमें राष्ट्रवाद के जहरीले रूप को निरंकुश छोड़ दिया गया था। भाजपा के हाथों में राष्ट्रवाद और राष्ट्र गौरव का अर्थ ही हिन्दू बहुसंख्यकों का शासन रहा है। यह ऐसा दौर था, जिसने देश को घातक परिणाम दिए। इस दौर ने भारत के जन समूहों में घबराहट व्याप्त कर दी थी। इससे पहले के तीस वर्षों में काँग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता का खूब दिखावा किया था, जिसका उदाहरण उच्चतम न्यायालय के शाह बानो मामले के निर्णय में मिलता है। इससे भारत के मुस्लिम समुदाय को घोर निराशा हुई थी। केरल में तो काँग्रेस ने लगातार सांप्रदायिक दलों से गठबंधन कर सरकार चलाई, और धर्मनिरपेक्ष होने की दुहाई भी देती रही।
भारत के अब तक के सभी नेताओं में जवाहर लाल नेहरु ही ऐसे थे, जिन्होंने प्रजातंत्र को सही रूप में समझा था। एक फ्रेंच लेखक के यह पूछे जाने पर कि वे सबसे बड़ी चुनौती किसे मानते हैं, पं. नेहरु ने कहा था कि सही साधनों से एक न्यायसंगत देश का निर्माण करना। एक धार्मिक देश में धर्मनिरपेक्षता की स्थापना करना।’’ उनके कथन का महत्व इस बात में है कि वे इन चुनौतियों को दूर करना, एक लक्ष्य मानते रहे। उनके लिए यह विचारअच्छे दिन आने वाले हैं’, जैसे प्रचार पर आधारित नहीं था। ही वे महंत और इमाम से मुलाकातों का ढोल पीटते थे। ब्रिटिश शासन के आखिरी दिनों में नेहरु ने कहा था कि ‘‘एक समृद्ध, प्रजातांत्रिक और प्रगतिशील भारत के निर्माण का सुअवसर आया है।’’
सही साधनों से न्यायसंगत समाज की स्थापना
पिछले 70 वर्षों में, भारतीय लोकतंत्र का लक्ष्य समृद्धि रहा होगा, परंतु यह बहुमत में कहीं दिखाई नहीं देता। समाज का एक छोटा-सा वर्ग ही समृद्धशाली होता गया है। केवल धनी वर्ग, बल्कि मध्य वर्ग भी पहले की अपेक्षा समृद्ध हो गया है। बाकी की जनता अभी भी जीविका के लिए संघर्ष कर रही है। इन निर्धनों के लिए न्यायसंगत समाज की परिकल्पना भी दूर की बात है। वास्तव में सही साधनों से न्यायसंगत समाज की स्थापना की जा सकती है। इसके लिए सही नीतियों की आवश्यकता है। इन्हें बनाना राजनतिक दलों का काम है।
अधिकांश भारतीयों के जीवन के संघर्ष को समाप्त करने के लिए हमें अपनी नीतियों की दिशा को नीचे जाते मानव विकास सूचकांक को ऊपर उठाने की ओर मोड़नी होगी। शिक्षा की गुणवत्ता की कमी के कारण लाखों युवा बेरोजगार हैं। एक सम्मानयुक्त जीविका कमाने के लिए उनका कौशल पर्याप्त नहीं है। इसके लिए दो प्रकार से तैयारी करनी होगी।
(1) शिक्षा एवं प्रशिक्षण के लिए समस्त संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग। चुनाव में हम इसी उद्देश्य के लिए तो मतदान करते हैं। लेकिन नेताओं की राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता पर भाषणबाजी खत्म ही नहीं होती। ऐसा लगता है कि सुशासन की पूरी जिम्मेदारी नौकरशाहों पर ही है। ऐसा होने से नौकरशाहों को अलग प्रकार की शक्ति मिल जाती है। वे किसी के प्रति जवाबदेह नहीं रह जाते हैं।
(2) सार्वजनिक नीति का दूसरा उद्देश्य आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाना होना चाहिए। हमारे युवाओं को रोजगार चाहिए। सरकार स्वयं प्रत्यक्ष रूप से रोजगारों का सृजन नहीं कर सकती। परन्तु वह उसके अनुकूल स्थितियां तैयार कर सकती है। ऐसा सार्वजनिक निवेश और मैक्रो इकॉनॉमिक नीति से किया जा सकता है। अपरिपक्व आर्थिक नीतियों ने बेराजगारी को बहुत बढ़ा दिया है। भारतीय राजनीतिक दल इस बात का आरोप नहीं लगा सकते कि उन्हें प्रजातंत्र की मंजिल तक पहुँचने का रास्ता नहीं दिखाया गया था। अगर वे देश को वहाँ ले जाने में असफल रहते हैं, तो इसके लिए वे स्वयं जिम्मेदार होंगे।
हिन्दूमें प्रकाशित बालाकृष्णन के लेख पर आधारित। 26 मार्च, 2019
किसी भी प्रजातंत्र के लिए चुनाव उसका अभिन्न अंग होते हैं। लेकिन यही अंतिम सत्य नहीं है। इस संस्था का अंतिम सत्य तो जनता और उसके जीवन की अंतर्वस्तु होती है। दुर्भाग्यवश भारत की राजनीतिक प्रक्रिया में राजनैतिक दल, चुनाव के पहले की अपनी कथनी को सत्ता में आने के बाद बदल देते हैं, और इस प्रकार से प्रजातंत्र की अनदेखी की जाती रहती है।
राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षता
पिछले पाँच वर्षों में, राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता, दो ऐसे जुमले रहे हैं, जो देश की राजनीति पर छाए रहे हैं। ये दोनों ही तत्व भाजपा और कांग्रेस से जुड़े रहे हैं। भारतीय प्रजातंत्र के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता एक प्रकार का आदर्श नारा है। परन्तु राजनैतिक दलों ने इसे भिन्न स्वरूप में प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है। वास्तव में यह चिंतनीय है।
दरअसल, राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता जैसे तत्वों के लिए प्रजातंत्र का होना अनिवार्य नहीं है। ईरान के अंतिम शाह और ईराक में सद्दाम हुसैन के अधीन भी धर्मनिरपेक्षता थी; जबकि ये दोनों ही शासक तानाशाह थे। चीनी गणतंत्र भी इतना राष्ट्रवादी है कि उसके समाजवाद को चीनी विशेषताओं वाला समाजवाद माना जाता है। बहरहाल, वह एक प्रजातंत्र नहीं है। भारत के लिए प्रजातंत्र, राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता से बढ़कर होना चाहिए। लेकिन यह दांव पर लगा हुआ है। इसका अर्थ यह नहीं कि प्रजातंत्र में इन दोनों आदर्शों का स्थान नगण्य है। वास्तव में तो ये तत्व प्रजातंत्र के महत्वपूर्ण भाग हैं।
अगर राष्ट्रवाद पर नजर डालें, तो प्रजातांत्रिक समुदाय बनने के साथ ही अपने राष्ट्र के हितों की रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य बन जाता है। भारत में खतरे दो स्रोतों से आते हैं। भारत से शत्रुता रखने वाले क्षेत्रों में चीन जैसे सत्तावादी शासन हैं। दूसरा, पश्चिमी शक्तियों ने अपने आर्थिक और राजनीतिक हितों को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक निकायों पर कब्जा कर लिया है, और इन बहुपक्षीय एजेंसियों के माध्यम से वे भारत के बाजार को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।
दूसरा तत्व धर्मनिरपेक्षता है। सैद्धांतिक रूप से तो किसी प्रजातांत्रिक सरकार के कार्यकलापों में धार्मिक प्रभाव दिखाई नहीं देना चाहिए। वर्तमान भारत में इस तथ्य की प्रासंगिकता को समझना आवश्यक है। इसके लिए अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों की रक्षा की जानी चाहिए।
राजनैतिक दलों के दांव-पेंच
भारतीय समाज में राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता की प्रासंगिकता को स्वीकार करने के लिए राजनैतिक दलों को इन तत्वों के दुरूपयोग करने का काम नहीं करना चाहिए। हमने हाल ही में ऐसे पाँच वर्ष पूरे किए हैं, जिसमें राष्ट्रवाद के जहरीले रूप को निरंकुश छोड़ दिया गया था। भाजपा के हाथों में राष्ट्रवाद और राष्ट्र गौरव का अर्थ ही हिन्दू बहुसंख्यकों का शासन रहा है। यह ऐसा दौर था, जिसने देश को घातक परिणाम दिए। इस दौर ने भारत के जन समूहों में घबराहट व्याप्त कर दी थी। इससे पहले के तीस वर्षों में काँग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता का खूब दिखावा किया था, जिसका उदाहरण उच्चतम न्यायालय के शाह बानो मामले के निर्णय में मिलता है। इससे भारत के मुस्लिम समुदाय को घोर निराशा हुई थी। केरल में तो काँग्रेस ने लगातार सांप्रदायिक दलों से गठबंधन कर सरकार चलाई, और धर्मनिरपेक्ष होने की दुहाई भी देती रही।
भारत के अब तक के सभी नेताओं में जवाहर लाल नेहरु ही ऐसे थे, जिन्होंने प्रजातंत्र को सही रूप में समझा था। एक फ्रेंच लेखक के यह पूछे जाने पर कि वे सबसे बड़ी चुनौती किसे मानते हैं, पं. नेहरु ने कहा था कि सही साधनों से एक न्यायसंगत देश का निर्माण करना। एक धार्मिक देश में धर्मनिरपेक्षता की स्थापना करना।’’ उनके कथन का महत्व इस बात में है कि वे इन चुनौतियों को दूर करना, एक लक्ष्य मानते रहे। उनके लिए यह विचारअच्छे दिन आने वाले हैं’, जैसे प्रचार पर आधारित नहीं था। ही वे महंत और इमाम से मुलाकातों का ढोल पीटते थे। ब्रिटिश शासन के आखिरी दिनों में नेहरु ने कहा था कि ‘‘एक समृद्ध, प्रजातांत्रिक और प्रगतिशील भारत के निर्माण का सुअवसर आया है।’’
सही साधनों से न्यायसंगत समाज की स्थापना
पिछले 70 वर्षों में, भारतीय लोकतंत्र का लक्ष्य समृद्धि रहा होगा, परंतु यह बहुमत में कहीं दिखाई नहीं देता। समाज का एक छोटा-सा वर्ग ही समृद्धशाली होता गया है। केवल धनी वर्ग, बल्कि मध्य वर्ग भी पहले की अपेक्षा समृद्ध हो गया है। बाकी की जनता अभी भी जीविका के लिए संघर्ष कर रही है। इन निर्धनों के लिए न्यायसंगत समाज की परिकल्पना भी दूर की बात है। वास्तव में सही साधनों से न्यायसंगत समाज की स्थापना की जा सकती है। इसके लिए सही नीतियों की आवश्यकता है। इन्हें बनाना राजनतिक दलों का काम है।
अधिकांश भारतीयों के जीवन के संघर्ष को समाप्त करने के लिए हमें अपनी नीतियों की दिशा को नीचे जाते मानव विकास सूचकांक को ऊपर उठाने की ओर मोड़नी होगी। शिक्षा की गुणवत्ता की कमी के कारण लाखों युवा बेरोजगार हैं। एक सम्मानयुक्त जीविका कमाने के लिए उनका कौशल पर्याप्त नहीं है। इसके लिए दो प्रकार से तैयारी करनी होगी।
(1) शिक्षा एवं प्रशिक्षण के लिए समस्त संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग। चुनाव में हम इसी उद्देश्य के लिए तो मतदान करते हैं। लेकिन नेताओं की राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता पर भाषणबाजी खत्म ही नहीं होती। ऐसा लगता है कि सुशासन की पूरी जिम्मेदारी नौकरशाहों पर ही है। ऐसा होने से नौकरशाहों को अलग प्रकार की शक्ति मिल जाती है। वे किसी के प्रति जवाबदेह नहीं रह जाते हैं।
(2) सार्वजनिक नीति का दूसरा उद्देश्य आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाना होना चाहिए। हमारे युवाओं को रोजगार चाहिए। सरकार स्वयं प्रत्यक्ष रूप से रोजगारों का सृजन नहीं कर सकती। परन्तु वह उसके अनुकूल स्थितियां तैयार कर सकती है। ऐसा सार्वजनिक निवेश और मैक्रो इकॉनॉमिक नीति से किया जा सकता है। अपरिपक्व आर्थिक नीतियों ने बेराजगारी को बहुत बढ़ा दिया है। भारतीय राजनीतिक दल इस बात का आरोप नहीं लगा सकते कि उन्हें प्रजातंत्र की मंजिल तक पहुँचने का रास्ता नहीं दिखाया गया था। अगर वे देश को वहाँ ले जाने में असफल रहते हैं, तो इसके लिए वे स्वयं जिम्मेदार होंगे।
हिन्दूमें प्रकाशित बालाकृष्णन के लेख पर आधारित। 26 मार्च, 2019
किसी भी प्रजातंत्र के लिए चुनाव उसका अभिन्न अंग होते हैं। लेकिन यही अंतिम सत्य नहीं है। इस संस्था का अंतिम सत्य तो जनता और उसके जीवन की अंतर्वस्तु होती है। दुर्भाग्यवश भारत की राजनीतिक प्रक्रिया में राजनैतिक दल, चुनाव के पहले की अपनी कथनी को सत्ता में आने के बाद बदल देते हैं, और इस प्रकार से प्रजातंत्र की अनदेखी की जाती रहती है।
राष्ट्रवाद, धर्मनिरपेक्षता
पिछले पाँच वर्षों में, राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता, दो ऐसे जुमले रहे हैं, जो देश की राजनीति पर छाए रहे हैं। ये दोनों ही तत्व भाजपा और कांग्रेस से जुड़े रहे हैं। भारतीय प्रजातंत्र के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता एक प्रकार का आदर्श नारा है। परन्तु राजनैतिक दलों ने इसे भिन्न स्वरूप में प्रस्तुत करना शुरू कर दिया है। वास्तव में यह चिंतनीय है।
दरअसल, राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता जैसे तत्वों के लिए प्रजातंत्र का होना अनिवार्य नहीं है। ईरान के अंतिम शाह और ईराक में सद्दाम हुसैन के अधीन भी धर्मनिरपेक्षता थी; जबकि ये दोनों ही शासक तानाशाह थे। चीनी गणतंत्र भी इतना राष्ट्रवादी है कि उसके समाजवाद को चीनी विशेषताओं वाला समाजवाद माना जाता है। बहरहाल, वह एक प्रजातंत्र नहीं है। भारत के लिए प्रजातंत्र, राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता से बढ़कर होना चाहिए। लेकिन यह दांव पर लगा हुआ है। इसका अर्थ यह नहीं कि प्रजातंत्र में इन दोनों आदर्शों का स्थान नगण्य है। वास्तव में तो ये तत्व प्रजातंत्र के महत्वपूर्ण भाग हैं।
अगर राष्ट्रवाद पर नजर डालें, तो प्रजातांत्रिक समुदाय बनने के साथ ही अपने राष्ट्र के हितों की रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य बन जाता है। भारत में खतरे दो स्रोतों से आते हैं। भारत से शत्रुता रखने वाले क्षेत्रों में चीन जैसे सत्तावादी शासन हैं। दूसरा, पश्चिमी शक्तियों ने अपने आर्थिक और राजनीतिक हितों को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक निकायों पर कब्जा कर लिया है, और इन बहुपक्षीय एजेंसियों के माध्यम से वे भारत के बाजार को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं।
दूसरा तत्व धर्मनिरपेक्षता है। सैद्धांतिक रूप से तो किसी प्रजातांत्रिक सरकार के कार्यकलापों में धार्मिक प्रभाव दिखाई नहीं देना चाहिए। वर्तमान भारत में इस तथ्य की प्रासंगिकता को समझना आवश्यक है। इसके लिए अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों की रक्षा की जानी चाहिए।
राजनैतिक दलों के दांव-पेंच
भारतीय समाज में राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता की प्रासंगिकता को स्वीकार करने के लिए राजनैतिक दलों को इन तत्वों के दुरूपयोग करने का काम नहीं करना चाहिए। हमने हाल ही में ऐसे पाँच वर्ष पूरे किए हैं, जिसमें राष्ट्रवाद के जहरीले रूप को निरंकुश छोड़ दिया गया था। भाजपा के हाथों में राष्ट्रवाद और राष्ट्र गौरव का अर्थ ही हिन्दू बहुसंख्यकों का शासन रहा है। यह ऐसा दौर था, जिसने देश को घातक परिणाम दिए। इस दौर ने भारत के जन समूहों में घबराहट व्याप्त कर दी थी। इससे पहले के तीस वर्षों में काँग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता का खूब दिखावा किया था, जिसका उदाहरण उच्चतम न्यायालय के शाह बानो मामले के निर्णय में मिलता है। इससे भारत के मुस्लिम समुदाय को घोर निराशा हुई थी। केरल में तो काँग्रेस ने लगातार सांप्रदायिक दलों से गठबंधन कर सरकार चलाई, और धर्मनिरपेक्ष होने की दुहाई भी देती रही।
भारत के अब तक के सभी नेताओं में जवाहर लाल नेहरु ही ऐसे थे, जिन्होंने प्रजातंत्र को सही रूप में समझा था। एक फ्रेंच लेखक के यह पूछे जाने पर कि वे सबसे बड़ी चुनौती किसे मानते हैं, पं. नेहरु ने कहा था कि सही साधनों से एक न्यायसंगत देश का निर्माण करना। एक धार्मिक देश में धर्मनिरपेक्षता की स्थापना करना।’’ उनके कथन का महत्व इस बात में है कि वे इन चुनौतियों को दूर करना, एक लक्ष्य मानते रहे। उनके लिए यह विचारअच्छे दिन आने वाले हैं’, जैसे प्रचार पर आधारित नहीं था। ही वे महंत और इमाम से मुलाकातों का ढोल पीटते थे। ब्रिटिश शासन के आखिरी दिनों में नेहरु ने कहा था कि ‘‘एक समृद्ध, प्रजातांत्रिक और प्रगतिशील भारत के निर्माण का सुअवसर आया है।’’
सही साधनों से न्यायसंगत समाज की स्थापना
पिछले 70 वर्षों में, भारतीय लोकतंत्र का लक्ष्य समृद्धि रहा होगा, परंतु यह बहुमत में कहीं दिखाई नहीं देता। समाज का एक छोटा-सा वर्ग ही समृद्धशाली होता गया है। केवल धनी वर्ग, बल्कि मध्य वर्ग भी पहले की अपेक्षा समृद्ध हो गया है। बाकी की जनता अभी भी जीविका के लिए संघर्ष कर रही है। इन निर्धनों के लिए न्यायसंगत समाज की परिकल्पना भी दूर की बात है। वास्तव में सही साधनों से न्यायसंगत समाज की स्थापना की जा सकती है। इसके लिए सही नीतियों की आवश्यकता है। इन्हें बनाना राजनतिक दलों का काम है।
अधिकांश भारतीयों के जीवन के संघर्ष को समाप्त करने के लिए हमें अपनी नीतियों की दिशा को नीचे जाते मानव विकास सूचकांक को ऊपर उठाने की ओर मोड़नी होगी। शिक्षा की गुणवत्ता की कमी के कारण लाखों युवा बेरोजगार हैं। एक सम्मानयुक्त जीविका कमाने के लिए उनका कौशल पर्याप्त नहीं है। इसके लिए दो प्रकार से तैयारी करनी होगी।
(1) शिक्षा एवं प्रशिक्षण के लिए समस्त संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग। चुनाव में हम इसी उद्देश्य के लिए तो मतदान करते हैं। लेकिन नेताओं की राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता पर भाषणबाजी खत्म ही नहीं होती। ऐसा लगता है कि सुशासन की पूरी जिम्मेदारी नौकरशाहों पर ही है। ऐसा होने से नौकरशाहों को अलग प्रकार की शक्ति मिल जाती है। वे किसी के प्रति जवाबदेह नहीं रह जाते हैं।
(2) सार्वजनिक नीति का दूसरा उद्देश्य आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाना होना चाहिए। हमारे युवाओं को रोजगार चाहिए। सरकार स्वयं प्रत्यक्ष रूप से रोजगारों का सृजन नहीं कर सकती। परन्तु वह उसके अनुकूल स्थितियां तैयार कर सकती है। ऐसा सार्वजनिक निवेश और मैक्रो इकॉनॉमिक नीति से किया जा सकता है। अपरिपक्व आर्थिक नीतियों ने बेराजगारी को बहुत बढ़ा दिया है। भारतीय राजनीतिक दल इस बात का आरोप नहीं लगा सकते कि उन्हें प्रजातंत्र की मंजिल तक पहुँचने का रास्ता नहीं दिखाया गया था। अगर वे देश को वहाँ ले जाने में असफल रहते हैं, तो इसके लिए वे स्वयं जिम्मेदार होंगे।
हिन्दूमें प्रकाशित बालाकृष्णन के लेख पर आधारित। 26 मार्च, 2019



Comments

Popular posts from this blog

Magadh University Bodhgaya Part 3rd Result 2015-2018

  Magadh University Bodhgaya Part 3rd Result 2015-2018 Magadh University Results 2018-19 Latest Updated on 23.02.2019  : खुशखबरी ! आज जारी होगा 1 लाख 30 हजार रेलवे भर्ती का विज्ञापन  Latest Updated On 23.02.2019  :-  Magadh University Has Declared  B.A III Year Exam Result 2018 . Candidates Can Check It From Link Given Below…… मगध यूनिवर्सिटी ने पूर्व में घोषित पार्ट III के परिणाम में 85000 रुके हुए परिणामों में से 16000 के क्लियर कर दिए हैं (Session 2015-18) जिन छात्रों को परिणाम देखने में समस्या आ रही हैं वे छात्र कुछ समय प्रतीक्षा करें अभी कुछ तकनीकी समस्या आ रही है कृपया धेर्ये से काम लें। एमयू ने तृतीय वर्ष के 90 हजार छात्रों का रिजल्ट रोका मगध यूनिवर्सिटी ने पूर्व में घोषित पार्ट III के परिणाम में 85000 रुके हुए परिणामों में से 16000 के क्लियर कर दिए हैं (Session 2015-18)   Publish Date:Fri, 22 Feb 2019 11:13 PM (IS          V ideo          Click Here  ...

Patliputra University UG Part-1 & PG Regular & Vocational Online Exam Form & Result 2023

Post Name :   UG Part-1 & PG Sem-1 Regular & Vocational 2023 Result Online Exam Form  About Post   :   Patliputra University,Patna (PPUP) Undergraduate Part -1Academic Session 2022-25 Regular & Vocational Course and PG Semester-1 Academic Session 2022-24 Regular & Vocational Course Exam Form 2022 Candidate Completed All Eligibility Criteria And Apply Online Application Form. Before You Apply Online Application Form Please Read Full Notification Patliputra University, Patna (Ppup) UG Part-1 & PG Sem-1 Exam Form 2022 WWW.FASTJOBINF.BLOGSPOT.COM IMPORTANT DATES & EXAM FEE UG PART-1 REGULAR & VOCATIONAL  Application Start : 20-12-2022 Last Date Apply Online :   03-01-2023 Late Fee Application Start : 11-03-2023 Late Fee Last Date : 02-04-2023 UG (REGULAR & GENERAL) PART-1 EXAM FEE General & BC-2 Category : RS 700/- BC-1/SC/ST Category         : RS 500/- Late Fee          ...

Patliputra University (PPU) Part-1 Session 2023-27 Regular & Vocational Course Admission Form 2023

  Post Name  : Patliputra University (PPU) Part-1 Session 2023-27 Regular & Vocational Course Admission Form 2023 About Post :   The online application process for Patliputra University Patna Graduate Part-1 Regular and Vocational Course Academic Session 2023-27 Online Application 2023 has started.  Please Read the Full Notification Before Apply Online.  Patliputra University Patna Patliputra University (PPU) Part-1 Regular & Vocational Course  Admission 2023 WWW.FASTJOBINF.BLOGSPOT.COM IMPORTANT DATES Application Start : 22-05-2023 Last Date Apply Online :  07-06-2023 Last Date Fee Payment : 07-06-2023 First Merit List Date : 09-06-2023  Admission Last Date :   17-06-2023  Second Merit List Date :  19-06-2023  Admission Last Date :   25-06-2023  Third Merit List Date :  27-06-2023  Admission Last Date :   02-07-2023  spot admisson registration 04-07-2023 last date 18-07-2023 admission...